विरेचन क्रिया – पित्त दोष और टॉक्सिन्स का आयुर्वेदिक इलाज – Virechan-kriya-ayurvedic-purgation-hindi
विरेचन क्रिया शरीर से पित्त दोष और विकार पदार्थ को बहार निकलने को ही विरेचन कहते है | यह पंचकर्म का दूसरा महत्वपूर्ण कर्म है इसमें प्राकर्तिक पेट की सफाई या औषदि दस्त के नाम से जाना जाता है | virechan-kriya-ayurvedic-purgation-hindi इस प्राकर्तिक उपचार से शेष जमा पित्त दोष को, लिवर के टोक्सिन और आंतो की सफाई आंतो की गन्दगी को बहार निकलना तथा बीमारी को जड़ से ख़त्म करती है | ये आयुर्वेदिक चिकित्सा कील मुहासे,एसिडिटी, लिवर डेटॉक्स, पीलिया जैसे में काफी अच्छे परिणाम है |
विरेचन क्रिया की प्रक्रिया (Step-by-Step Process)
विरेचन थेरेपी 3 चरणों में पूरी की जाती है:
1. पूर्वकर्म (Preparation)
स्नेहन – 3-5 दिन तक घी का सेवन करना और पूरे शरीर की तेल मालिश।
स्वेदन – हर्बल स्टीम या गर्म कपड़े से पसीना निकालकर टॉक्सिन्स ढीले किए जाते हैं।
2. प्रधान कर्म (Main Therapy)
सुबह खाली पेट त्रिफला चूर्ण या हरितकी (हरड़) का काढ़ा पिलाया जाता है।
12-15 बार प्राकृतिक दस्त होते हैं, जिसमें पित्त और आँतों की गंदगी बाहर आती है।
प्रक्रिया के बाद नारियल पानी या मूंग दाल का सूप दिया जाता है।
3. पश्चातकर्म (Recovery)
संतुलित आहार – खिचड़ी, उबली हुई सब्जियाँ, और घी का सेवन।
2-3 दिन तक भारी व्यायाम और ठंडी चीजों से परहेज।
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विरेचन क्रिया के लाभ (Benefits of Virechan)
- कब्ज दूर करे – आंतो की सफाई करता है और पाचन शक्ति को मजबूत बनता है |
- पित्त दोष का संतुलन – एसिडिटी, पीलिया में आराम।
- लिवर डिटॉक्स – फैटी लिवर और पीलिया का प्राकृतिक इलाज है |
- वजन नियंत्रण – फैट बर्न करता है।
- रक्त शुद्धि – खून की अशुद्धियाँ दूर करता है |
- मानसिक शांति – चिड़चिड़ापन और गुस्से को कम करता है।
सावधानियाँ (Precautions)
- केवल आयुर्वेदिक डॉक्टर की देखरेख में करना चाहिए |
- गर्भवती महिलाएँ,अल्सर वाले इससे बचें।
- प्रक्रिया के बाद ठंडे पानी और मसालेदार भोजन ना खाये |